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70 / हरीश भादानी

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हमारे जन्म से अधिक अच्छा
और क्या घटित होता
इस सदी में !
जन्मे हम
कि इस सदी की भोग्या माँ,
भोगी पिता के
संस्कारों की हम कब्र खोदें
अतीत की कूबड़, पठारों को तरासें
सांवली भूरी माटी बिछाएँ
ताज़ा हसरतों को बीजने
पसीना सींचने को जन्में हम;
सूखी मज्जाओं की जोड़ से बने हमलोग
जन्में इसलिए
कि जिन अँधेरों में पोषे गए हम
धूप से धोएँ उन्हें
दुर्गध पीकर
गर्म सांसें दें वातावरण को
अभावों की अटारी में जवानी भोगनेवाले हमलोग
ठंडी आँखों में गड़ें
मन के बीमार
लोगों के अमुँहे घावांे पर
नस्तर लगाएँ;
जन्में इसलिए
कि थेगड़े लगे आकाश के ऊपर
हम अपनी दृष्टि का आकाश कसदें
दिशा-भ्रम से असित दिशाओं पर
हम टाँक दें सकल्प अपने
इम सदी का
एक केवल एक उजला दिन
कि जन्में हम
अनागत सदियों का भविष्य लेकर
हमारे जन्म से अधिक अच्छा
और क्या घटित होता
इस सदी में !