81-90 मुक्तक / प्राण शर्मा
८१
साक़ी को पीने की ख़्वाहिश फिर अपनी बतला बैठा
मदिरा की सोंधी ख़ुशबू से फिर मन को बहला बैठा
मस्ती के आगे कुछ अपनी पेश गयी ना ए यारो
घर जाने के बदले मैं फिर मयख़ाने में जा बैठा
८२
कष्ट नहीं है मयख़ाने में जिनको आने-जाने के
जिनको अवसर नित मिलते हैं मय के रंग जमाने के
लोग बड़े ही किस्मत वाले होते हैं दुनिया में वे
जिनके घर आगे-पिछवाड़े पड़ते हैं मयख़ाने के
८३
लोग समझ पाये हैं अब ये कितनी सच्ची है हाला
नफ़रत से सबको करती है दूर हमेशा मधुबाला
धर्म के ठेकेदारों से अब तंग आये हैं लोग सभी
खाली मन्दिर-मस्जिद हैं भरी हुयी है मधुशाला
८४
संगत कर लो पहले मय के गीत सुनाने वाले से
रोशन कर लो पहले मन को मस्ती के उजियाले से
साक़ी और मयख़ाना क्या है ज्ञान सभी मिल जाएगा
सीखो पहले मदिरा पीना दोस्त किसी मतवाले से
८५
आकर देखो कितनी खुशियाँ मिलती हैं मृदु हाला में
और देखो कितना अपनापन मिलता है मधुबाला में
उपदेशक तो मधु के अवगुण लाख गिनायेगा लेकिन
आकर देखो मदिरा के गुण दोस्त स्वयं मधुशाला में
८६
पण्डित जी बोले – मतवालो, मदिर पर क्यों मरते हो
इस सुन्दर जीवन के धन का अपव्यय तुम क्यों करते हो
मतवाले बोले – इस धन को हम बरबाद करें न करें
पहले यह बतलाओ, हमसे नफ़रत तुम क्यों करते हो
८७
हम भी इनसान खुदा के हम भी जीवन जीते हैं
हम भी तुम जैसे हँसते हैं, चाक जिगर के सीते हैं
पण्डित जी, तुम में और हममें सिर्फ़ इसीका रोना है
तुम पीते हो दूध-मलाई और हम मदिरा पीते हैं
८८
भक्त बने फिरते हैं अब तो लोग सभी मधुबालाअ के
दीवाने बनकर फिरते हैं लोग सभी अब हाला के
जिसको देखो बात है करता पीने और पिलाने की
लोगों के मेले लगते हैं आँगन में मधुशाला के
८९
मेरे अन्तर की तृष्णा को तेरा काम बुझाना है
इस प्यासे जीवन पर तेरा काम सुरा बरसाना है
सदियों से सम्बंध निकट का तेरा – मेरा है साक़ी
मेरा काम सुरा पीना है तेरा काम पिलाना है
९०
पीने की अभिलाषा में वे बादल से मँडराते हैं
मान – प्रतिष्ठा मधुशाला की आकर रोज़ बढ़ाते हैं
देख कहीं प्यासा ही कोई लौट ना जाए ए साक़ी
कोसों दूर से पीने वाले मधुशाला में आते हैंप करें