भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
84 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
हीर आखदी रांझिणा बुरा कीतो साडा कम है नाल वैराइयां दे
साडी खोज नूं तक के करे चुगली दिने रात है विच बुरिआइयां दे
मिले सिरां नूं एह विछोड़ देंदा भंग घतदा विच कुड़माइयां दे
बाबल अंमड़ी थे जाए ठिठ करसी जाए आखसी पास भरजाइयां दे
शब्दार्थ
<references/>