भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
8 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
इक तखत हजारे दी गल कीजे जित्थे रांझयां रंग मचाया ए
छैल गभरू मसत अलबेलड़े नी सुंदर इक थीं इक सवाया ए
वाले कोकले मुंदरे मझ<ref>कमर तोड़</ref> लुंगी नवां ठाठ ते ठाठ चड़हाया ए
केही सिफत हज़ारे दी आख सकां गोया मिशत ज़मीं ते आया ए
शब्दार्थ
<references/>