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"मुझे शब्द चाहिए/ प्रदीप मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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<poem>'''मुझे शब्द चाहिए'''
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जिसकी बाढ़ में बह जाए
 
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मन की सारी कुण्ठाएं
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रोना चाहता हूँ
 
रोना चाहता हूँ
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जैसे बहती रहती है नदी
 
जैसे बहती रहती है नदी
 
पीढ़ी दर पीढ़ी हमारे अन्दर निरंतर
 
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जैसे भीनता रहता है वायु
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फेफड़ों की सतह पर
 
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बात करना चाहता हूँ
 
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मुझे वायु जैसे शब्द चाहिए
 
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और नदी जैसी भाषा*
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और नदी जैसी भाषा
 
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22:50, 13 दिसम्बर 2010 के समय का अवतरण

हँसना चाहता हूँ
इतनी ज़ोर की हँसी चाहिए
जिसकी बाढ़ में बह जाए
मन की सारी कुण्ठाएँ

रोना चाहता हूँ
इतनी करुणा चाहिए कि
उसकी नमी से
खेत में बदल जाए सारा मरूस्थल

चिल्लाना चाहता हूँ
इतनी तीव्रता चाहिए जिससे
सामने खड़ी चट्टान में
दरार पड़ जाए

बात करना चाहता हूँ
ऐसे शब्द चाहिए
जो हमारे रगों में बहें

जैसे बहती रहती है नदी
पीढ़ी दर पीढ़ी हमारे अन्दर निरंतर
जैसे भीनता रहती है वायु
फेफड़ों की सतह पर

बात करना चाहता हूँ
मुझे वायु जैसे शब्द चाहिए
और नदी जैसी भाषा