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"वो शख़्स एक समंदर जो सबको लगता था / कुमार अनिल" के अवतरणों में अंतर

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17:49, 20 दिसम्बर 2010 का अवतरण

वो शख्स एक समंदर जो सबको लगता था
किसे पता है भला वो भी कितना प्यासा था

अजीब बात ये अक्सर हुई है साथ मेरे
घटा थी, दोस्त थे, मय थी मगर मै तन्हा था

घटा को देख के हर शख्स काँप काँप गया
हमारे गाँव का हर एक मकान कच्चा था

ये बात और है खुशियाँ वो लिखनl भूल गया
सुना तो है कि नसीब उसने मेरा लिक्खा था

ये कौन याद के पत्थर यहाँ उछाल गया
जहन की झील का पानी तो कब का सोया था

किसी ने क़त्ल ही देखा न मेरी चीख सुनी
तमाशबीन थे अंधे , हुजूम बहरा था

हरेक क्यारी में उग आयी कोई नागफनी
बड़ी उम्मीद से हमने गुलाब रोपा था

अगर 'अनिल' वो नहीं था तो कौन था यारो
जो शहरे संग में भी दिल की बात करता था