भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कौन किसको क्या बताए क्या हुआ / कुमार अनिल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: <poem>कौन किसको क्या बताये क्या हुआ हर अधर पर मौन है चिपका हुआ जब भी ल…)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
<poem>कौन किसको क्या बताये क्या हुआ
+
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=कुमार अनिल
 +
|संग्रह=और कब तक चुप रहें / कुमार अनिल
 +
}}
 +
{{KKCatGhazal‎}}‎
 +
<Poem>
 +
कौन किसको क्या बताए क्या हुआ
 
हर अधर पर मौन है चिपका हुआ
 
हर अधर पर मौन है चिपका हुआ
  
जब भी ली हैं सिन्धु ने अंगड़ाईयां
+
जब भी ली हैं सिन्धु ने अँगड़ाईयाँ
 
तट को फिर देखा गया हटता हुआ
 
तट को फिर देखा गया हटता हुआ
  
वक्त की आँधी उमड़ कर जब उठी
+
वक़्त की आँधी उमड़ कर जब उठी
 
आदमी तिनके से भी हल्का हुआ
 
आदमी तिनके से भी हल्का हुआ
  
बाँटने आये है अंधे रेवड़ी
+
बाँटने आए है अंधे रेवड़ी
 
हाथ अपना खींच लो फैला हुआ
 
हाथ अपना खींच लो फैला हुआ
  
पंक्ति 15: पंक्ति 22:
  
 
सोचता सोया था अपने देश की
 
सोचता सोया था अपने देश की
स्वप्न में देखा मकां जलता हुआ
+
स्वप्न में देखा मकाँ जलता हुआ
  
 
कह रहें हैं आप जिसको दिल मेरा
 
कह रहें हैं आप जिसको दिल मेरा
दर्द का इक ढेर है सिमटा हुआ</poem>
+
दर्द का इक ढेर है सिमटा हुआ
 +
</poem>

01:16, 21 दिसम्बर 2010 के समय का अवतरण

कौन किसको क्या बताए क्या हुआ
हर अधर पर मौन है चिपका हुआ

जब भी ली हैं सिन्धु ने अँगड़ाईयाँ
तट को फिर देखा गया हटता हुआ

वक़्त की आँधी उमड़ कर जब उठी
आदमी तिनके से भी हल्का हुआ

बाँटने आए है अंधे रेवड़ी
हाथ अपना खींच लो फैला हुआ

भीड़ में इक आदमी मिलता नहीं
आदमी अब किस कदर तन्हा हुआ

सोचता सोया था अपने देश की
स्वप्न में देखा मकाँ जलता हुआ

कह रहें हैं आप जिसको दिल मेरा
दर्द का इक ढेर है सिमटा हुआ