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"कौन किसको क्या बताए क्या हुआ / कुमार अनिल" के अवतरणों में अंतर
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हर अधर पर मौन है चिपका हुआ | हर अधर पर मौन है चिपका हुआ | ||
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तट को फिर देखा गया हटता हुआ | तट को फिर देखा गया हटता हुआ | ||
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आदमी तिनके से भी हल्का हुआ | आदमी तिनके से भी हल्का हुआ | ||
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हाथ अपना खींच लो फैला हुआ | हाथ अपना खींच लो फैला हुआ | ||
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सोचता सोया था अपने देश की | सोचता सोया था अपने देश की | ||
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− | दर्द का इक ढेर है सिमटा हुआ</poem> | + | दर्द का इक ढेर है सिमटा हुआ |
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01:16, 21 दिसम्बर 2010 के समय का अवतरण
कौन किसको क्या बताए क्या हुआ
हर अधर पर मौन है चिपका हुआ
जब भी ली हैं सिन्धु ने अँगड़ाईयाँ
तट को फिर देखा गया हटता हुआ
वक़्त की आँधी उमड़ कर जब उठी
आदमी तिनके से भी हल्का हुआ
बाँटने आए है अंधे रेवड़ी
हाथ अपना खींच लो फैला हुआ
भीड़ में इक आदमी मिलता नहीं
आदमी अब किस कदर तन्हा हुआ
सोचता सोया था अपने देश की
स्वप्न में देखा मकाँ जलता हुआ
कह रहें हैं आप जिसको दिल मेरा
दर्द का इक ढेर है सिमटा हुआ