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"लाई फिर इक लग़्ज़िशे-मस्ताना तेरे शहर में / कैफ़ी आज़मी" के अवतरणों में अंतर
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− | लाई फिर इक लग़्ज़िशे-मस्ताना<ref>मादक लड़खड़ाहट</ref> तेरे | + | लाई फिर इक लग़्ज़िशे-मस्ताना<ref>मादक लड़खड़ाहट</ref> तेरे शहर में । |
− | फिर बनेंगी मस्जिदें मयख़ाना तेरे | + | फिर बनेंगी मस्जिदें मयख़ाना तेरे शहर में । |
आज फिर टूटेंगी तेरे घर की नाज़ुक खिड़कियाँ | आज फिर टूटेंगी तेरे घर की नाज़ुक खिड़कियाँ | ||
− | आज फिर देखा गया दीवाना तेरे | + | आज फिर देखा गया दीवाना तेरे शहर में । |
जुर्म है तेरी गली से सर झुकाकर लौटना | जुर्म है तेरी गली से सर झुकाकर लौटना | ||
− | कुफ़्र<ref>धर्मविरोधी</ref> है पथराव से घबराना तेरे | + | कुफ़्र<ref>धर्मविरोधी</ref> है पथराव से घबराना तेरे शहर में । |
शाहनामे<ref>फ़ारसी कवि फ़िरदौसी की अमर रचना</ref> लिक्खे हैं खंडरात की हर ईंट पर | शाहनामे<ref>फ़ारसी कवि फ़िरदौसी की अमर रचना</ref> लिक्खे हैं खंडरात की हर ईंट पर | ||
− | हर जगह है दफ़्न इक अफ़साना तेरे | + | हर जगह है दफ़्न इक अफ़साना तेरे शहर में । |
कुछ कनीज़ें<ref>दासियाँ</ref> जो हरीमे-नाज़<ref>प्रेमिका का घर</ref> में हैं बारयाब<ref>जिसे प्रवेश मिल गया हो</ref> | कुछ कनीज़ें<ref>दासियाँ</ref> जो हरीमे-नाज़<ref>प्रेमिका का घर</ref> में हैं बारयाब<ref>जिसे प्रवेश मिल गया हो</ref> | ||
− | माँगती हैं जानो-दिल नज़्राना तेरे | + | माँगती हैं जानो-दिल नज़्राना तेरे शहर में । |
नंगी सड़कों पर भटककर देख, जब मरती है रात | नंगी सड़कों पर भटककर देख, जब मरती है रात | ||
− | रेंगता है हर तरफ़ वीराना तेरे | + | रेंगता है हर तरफ़ वीराना तेरे शहर में । |
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17:58, 27 दिसम्बर 2010 के समय का अवतरण
लाई फिर इक लग़्ज़िशे-मस्ताना<ref>मादक लड़खड़ाहट</ref> तेरे शहर में ।
फिर बनेंगी मस्जिदें मयख़ाना तेरे शहर में ।
आज फिर टूटेंगी तेरे घर की नाज़ुक खिड़कियाँ
आज फिर देखा गया दीवाना तेरे शहर में ।
जुर्म है तेरी गली से सर झुकाकर लौटना
कुफ़्र<ref>धर्मविरोधी</ref> है पथराव से घबराना तेरे शहर में ।
शाहनामे<ref>फ़ारसी कवि फ़िरदौसी की अमर रचना</ref> लिक्खे हैं खंडरात की हर ईंट पर
हर जगह है दफ़्न इक अफ़साना तेरे शहर में ।
कुछ कनीज़ें<ref>दासियाँ</ref> जो हरीमे-नाज़<ref>प्रेमिका का घर</ref> में हैं बारयाब<ref>जिसे प्रवेश मिल गया हो</ref>
माँगती हैं जानो-दिल नज़्राना तेरे शहर में ।
नंगी सड़कों पर भटककर देख, जब मरती है रात
रेंगता है हर तरफ़ वीराना तेरे शहर में ।
शब्दार्थ
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