भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"रात भर मुझको ग़म-ए-यार ने सोने न दिया/ ज़फ़र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बहादुर शाह ज़फ़र |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> रात भर मुझक…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
18:14, 27 दिसम्बर 2010 का अवतरण
रात भर मुझको गम-ए-यार ने सोने न दिया
सुबह को खौफे शबे तार न सोने न दिया
शम्अ की तरह मुझे रात कटी सूली पर
चैन से यादे कदे यार ने सोने न दिया
यह कराहा दर्द के साथ तेरा बीमार-ए-अलम
किसी हमसायें को बीमार ने सोने न दिया
ए दिल-ए-जार तु सोया किया आराम से रात
मुझे पल भर भी दिल-ए-जार सोने न दिया
सोऊं मैं क्या कि मेरे पांव को भी जिन्दां में
आरजू-ए-खलिश-ए-यार ने सोने न दिया
यासो-गम रंजो-ताअब मेरे हुए दुश्मने-जां
ऐ जफर, शब इन्हीं दो-चार ने सोने ना दिया