भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कतरा रहें है आज कल पंछी उड़ान से / कुमार अनिल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: <poem>कतरा रहें हैं आज कल पंछी उडान से पत्थर बरस रहे हैं बहुत आसमान से …)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=कुमार अनिल
 +
|संग्रह=और कब तक चुप रहें / कुमार अनिल
 +
}}
 +
{{KKCatGhazal‎}}‎
 
<poem>कतरा रहें हैं आज कल पंछी उडान से
 
<poem>कतरा रहें हैं आज कल पंछी उडान से
 
पत्थर बरस रहे हैं बहुत आसमान से
 
पत्थर बरस रहे हैं बहुत आसमान से

20:45, 28 दिसम्बर 2010 के समय का अवतरण

कतरा रहें हैं आज कल पंछी उडान से
पत्थर बरस रहे हैं बहुत आसमान से

कब तक उठाऊँ बोझ भला इस जहान का
अक्सर ये पूछती है जमीं आसमान से

ग़ुरबत ने गम भुला दिया बेटे के क़त्ल का
लाचार बाप फिर गया अपने बयान से

ऊपर पहुँच के लोग भी छोटे बहुत लगे
कुछ अपने भी देखा था उनको ढलान से

मैं बेवफ़ा हूँ मान ये लूँगा हज़ार बार
लेकिन वो एक बार कहे तो जुबान से

फिर आज हँस न पायेगा शायद तू शाम तक
अख़बार पढ़ रहा है क्यों इस दर्जा ध्यान से