भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सिर्फ़ मेरा ही नहीं था ये शहर तेरा भी था / कुमार अनिल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: <poem>सिर्फ मेरा ही नहीं था ये शहर तेरा भी था तूने लूटा खुद जिसे ऐ दोस्…)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=कुमार अनिल
 +
|संग्रह=और कब तक चुप रहें / कुमार अनिल
 +
}}
 +
{{KKCatGhazal‎}}‎
 
<poem>सिर्फ मेरा ही नहीं था ये शहर तेरा भी था
 
<poem>सिर्फ मेरा ही नहीं था ये शहर तेरा भी था
 
तूने लूटा खुद जिसे ऐ दोस्त घर तेरा भी था
 
तूने लूटा खुद जिसे ऐ दोस्त घर तेरा भी था

20:47, 28 दिसम्बर 2010 के समय का अवतरण

सिर्फ मेरा ही नहीं था ये शहर तेरा भी था
तूने लूटा खुद जिसे ऐ दोस्त घर तेरा भी था

काट डाला तूने जिसको किस कदर शादाब था
छाँव देता था मुझे तो वो शज़र तेरा भी था

एक थी मंजिल हमारी एक ही था रास्ता
मैं चला था जिस सफ़र पे वो सफ़र तेरा भी था

कल क़ी आँधी ने बुझा डाले दिये जो, उनमे ही
था मेरा लख्ते जिगर, नूरे नजर तेरा भी था

राहे रंजिश का इशारा एक ही उंगली का था
जिसने भटकाया मुझे वो राहबर तेरा भी था

एक दहशत क़ी गुफा से मै न बाहर आ सका
डर अगर अपना इधर था, गम उधर तेरा भी था