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"याद रखना जो हुए घर से जो बेघर आँसू / कुमार अनिल" के अवतरणों में अंतर

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(नया पृष्ठ: <poem>याद रखना कि हुए घर से जो बेघर आँसू तो जमीं को ही बना देंगे समंदर …)
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20:54, 30 दिसम्बर 2010 का अवतरण

याद रखना कि हुए घर से जो बेघर आँसू
तो जमीं को ही बना देंगे समंदर आँसू

कोई उम्मीद का पलकों पे नहीं जलता चिराग
आज क्या बैठ गए घर में ही थक कर आँसू

टूट कर आँख से हर हाल बिखरना था इन्हें
कब तलक लेते भला दर्द से टक्कर आँसू

आँख की स्याही ने रुखसारों पे लिक्खा है जिसे
प्यार की एक कहानी के हैं अक्षर आँसू

वो जो पूछेंगे कि क्या दर्द बहुत हैं दिल में
हम को चुप देख के दे जायेंगे उत्तर आँसू

आज फिर सोई है मजदूर की बिटिया भूखी
कह रहे उसके यही गाल पे जम कर आँसू

हमको जीवन की हकीकत हुई मालूम 'अनिल'
मिल गया मिट्टी में जब आँख से गिरकर आँसू