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"हिन्दू है कोई, कोई मुसलमान शहर में / कुमार अनिल" के अवतरणों में अंतर
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<poem>हिन्दू है कोई, कोई मुसलमान शहर में | <poem>हिन्दू है कोई, कोई मुसलमान शहर में | ||
ढूँढे न मिला एक भी इन्सान शहर में | ढूँढे न मिला एक भी इन्सान शहर में |
15:03, 31 दिसम्बर 2010 के समय का अवतरण
हिन्दू है कोई, कोई मुसलमान शहर में
ढूँढे न मिला एक भी इन्सान शहर में
शायद कोई पुकार ले ये सोचता हुआ
कब से भटक रहा हूँ मै अनजान शहर में
बिखरे पड़े हैं आदमी लाशों की शक्ल में
होकर चुका है कोई घमासान शहर में
अच्छा नहीं तो कोई बुरा ही कहे मुझे
अपना हो कोई इतना तो अनजान शहर में
सब लुट गया है फिर भी दीया इक उम्मीद का
जलता है मेरे दिल के बियाबान शहर में
बच्चा कोई हंसेगा कि महकेगा कोई फूल
लौटेंगी फिर से रौनकें वीरान शहर में