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"दीवारों को घर समझा था / कुमार अनिल" के अवतरणों में अंतर

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<poem>दीवारों को घर समझा था
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मैं कम से कमतर समझा था
 
मैं कम से कमतर समझा था
  

15:05, 31 दिसम्बर 2010 के समय का अवतरण

दीवारों को घर समझा था
मैं कम से कमतर समझा था

सच का मोल नहीं है, सच में
तू मुझसे से बेहतर समझा था

सिक्के के दो पहलु सुख-दुःख
दुनिया ने अन्तर समझा था

थका हुआ था रात बहुत मैं
धरती को बिस्तर समझा था

आखिर वो पत्थर ही निकला
मैं जिसको ईश्वर समझा था

प्रश्न ही था वह प्रश्न के बदले
मैं पागल उत्तर समझा था