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"सबकी आँखों में झाँकता हूँ मै / कुमार अनिल" के अवतरणों में अंतर
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15:05, 31 दिसम्बर 2010 के समय का अवतरण
सबकी आँखों में झाँकता हूँ मैं
जाने क्या चीज ढूँढता हूँ मैं
अपनी सूरत से हो गयी नफरत
आईने यूं भी तोड़ता हूँ मैं
आदमी किस कदर हुआ तन्हा
तन्हा बैठा ये सोचता हूँ मैं
एक जंगल है वो भी जलता हुआ
अब जहाँ तक भी देखता हूँ मैं
कोई कहता है आदमी जो मुझे
भीड़ में खुद को ढूँढता हूँ मैं
अस्ल में अब ग़ज़ल नहीं कहता
खून दिल का निचोड़ता हूँ मैं