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"प्यार की पीर को समझता हूँ / कुमार अनिल" के अवतरणों में अंतर

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<poem>प्यार की पीर को समझता हूँ
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जुर्मो ताजीर  को समझता हूँ
 
जुर्मो ताजीर  को समझता हूँ
  

15:08, 31 दिसम्बर 2010 के समय का अवतरण

प्यार की पीर को समझता हूँ
जुर्मो ताजीर को समझता हूँ

साफगोई से बात कर प्यारे
तंज के तीर को समझता हूँ

ख्वाब मैं देखता नहीं यूँ भी
क्योंकि ताबीर को समझता हूँ

जुल्फ क्या है मुझे पता है सब
यानि जंजीर को समझता हूँ

खून हैं तो जरूर बोलेगा
खूं की तासीर को समझता हूँ

आके बस्ती में आग बाँटेगा
उसकी तक़रीर को समझता हूँ

मैंने उर्दू नहीं पढ़ी लेकिन
ग़ालिब ओ मीर को समझता हूँ