भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"प्यार के बंधन तुम्हारे जब से ढीले हो गए / कुमार अनिल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Kumar anil (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: <poem>प्यार के बंधन तुम्हारे जब से ढीले हो गए कल्पनाओं के सुनहले पंख …) |
(कोई अंतर नहीं)
|
07:11, 2 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
प्यार के बंधन तुम्हारे जब से ढीले हो गए
कल्पनाओं के सुनहले पंख गीले हो गए
तुम चले तो साथ देने को बहारें चल पड़ीं
हम चले तो राह के गुल भी कंटीले हो गए
बन के मरहम वक्त ने ज़ख्मो को जितना भी भरा
याद के नश्तर भी उतने ही नुकीले हो गए
मीठी नजरों ने तुम्हारी छू लिया जब भी मुझे
कितनी क्वारी हसरतों के हाथ पीले हो गए
दिल को आईना बनाकर क्या चले हम दो कदम
इस शहर के लोग सारे पत्थरीले हो गए
तेरी गजलों में मिला वो दर्द दुनिया को 'अनिल'
पत्थरों के भी सुना है नैन गीले हो गए