भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हवा के झोकों में मद्धम-सी सरसराहट है / कुमार अनिल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: <poem> हवा के झोंको में मद्धम सी सरसराहट है ये कौन आता है,किसके पगों की…)
 
(कोई अंतर नहीं)

08:26, 2 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

हवा के झोंको में मद्धम सी सरसराहट है
ये कौन आता है,किसके पगों की आहट है

नदी ये जाती है सागर से अपने मिलने को
अधर पे गीत हैं , कदमो में लडखडाहट है

वो शख्स सो तो गया खाली पेट ही लेकिन
उदर में घुटने हैं, पलकों में कसमसाहट है

हमारी पीढ़ी है मुर्दा अगर तो फिर यारो
हमारे खून में ये कैसी सनसनाहट है

ये देश सौंप दिया हमने उनको, जिनके लिए
धर्म, ईमान कुछ सिक्कों की खनखनाहट है

कोई भी पीर नहीं अनछुई रही हमसे
ये बात और है अधरों पे मुस्कराहट है

तुम्हारा गीत 'अनिल' छू गया उन्हें शायद
फिजां में गूँजती परिचित सी गुनगुनाहट है