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<poem>
घर फूटे गलियारे निकले आँगन गायब हो गया
 शासन और प्रशासन में अनुशासन ग़ायब हो गया।गया ।
त्यौहारों का गला दबाया
 
बदसूरत महँगाई ने
 
आँख मिचोली हँसी ठिठोली
 
छीना है तन्हाई ने
 फागुन गायब हुआ हमारा सावन गायब हो गया।गया ।
शहरों ने कुछ टुकड़े फेंके
 
गाँव अभागे दौड़ पड़े
 
रंगों की परिभाषा पढ़ने
 
कच्चे धागे दौड़ पड़े
चूसा ख़ून मशीनों ने अपनापन ग़ायब हो गया ।
चूसा खून मशीनों ने अपनापन ग़ायब हो गया।  नींद हमारी खोयीखोई-खोयी खोई
गीत हमारे रूठे हैं
 
रिश्ते नाते बर्तन जैसे
 
घर में टूटे-फूटे हैं
 आँख भरी है गोकुल की वृंदावन ग़ायब हो गया।।गया ।।</poem>
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