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"बेकसों को सताने से क्या फ़ायदा / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर

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19:08, 5 जनवरी 2011 का अवतरण


बेकसों को सताने से क्या फ़ायदा
दिल किसी का दुखाने से क्या फ़ायदा

साज़े-दिल के हैं सब तार टूटे हुए
फिर कोई गीत गाने से क्या फ़ायदा

दिल झुके तो इबादत में आए मज़ा
बे-वजह सर झुकाने से क्या फ़ायदा

दिल चुराया है तुमने मेरा ठीक है
अब ये नज़रें चुराने से क्या फ़ायदा

जो भी दिल में है वह साफ़ कह दीजिये
बात दिल में छुपाने से क्या फ़ायदा

आते ही रट लगाई है जाने की बस
ऐसे आने न आने से क्या फ़ायदा

उनसे कहियेगा इस उम्र में अब 'रक़ीब'
नाज़-नख़रे दिखाने से क्या फ़ायदा