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"जीवित चिड़िया सिसक रही है / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
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09:57, 9 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
अब भी कोई जीवित चिड़िया सिसक रही है
नील गगन के पखनों में
नील सिंधु के पानी में
मैं अब भी उस जीवित चिड़िया की सिसकन से
सिहर रहा हूँ
वह जीवित चिड़िया मनुष्य का अमर हृदय है।
रचनाकाल: १६-०७-१९६१