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सुभटकाय मेघों का संघट
कर-निकाय-रवि का निगरण कर
जल बल की जय के कोलाहल से दिगंत भर
नीलकाय नभ के मंडल से
भूमंडल पर उतरा;
तरल काय रवि की तनया के तनुल तोय में
बिंबकाय हो पुलकलाय कंजन-सा विचरा।
रचनाकाल: ०३-०८-१९६२