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14:00, 9 जनवरी 2011 के समय का अवतरण


घरों से बाहर
नगर निकल आया है सड़कों पर

अब दिखाई दिए हैं
सहस्रों की संख्या में उसके पैर
एक साथ चलते हुए
एकता के दृढ़ स्तम्भ जैसे
एक साथ बढ़ते हुए
कई हजार हैं इसके सिर
इन सिरों के समूह का एक संसार है
इस संसार का एक संघ है
राष्ट्रसंघ की तरह
इसे देखकर
मेरा सिर ऊँचा हो गया है

इस नगर के हाथ
जय के हाथ हैं
जय के हाथों का यह वन
कीर्ति और कला की क्रीड़ा का वन है।
यही हाथ देश के हाथ हैं!
कुछेक यहाँ हैं
बहुत से मोरचे पर लड़ रहे हैं
शांति और सुरक्षा के लिए
वही हाथ बहादुर हाथ हैं
इस नगर के हाथ उनके साथ हैं।

यह नगर
सच्ची सहानुभूति से
आभार प्रकट कर रहा है
जवानों के प्रति,
उनके शौर्य की प्रशंसा कर रहा है
उनके साथ
जीने-मरने की प्रतिज्ञा कर रहा है।

आज का जुलूस
अखंड एकता का
जुलूस है।

रचनाकाल: २३-०९-१९६५