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मुझे
तुमसे नहीं
समाज से शिकायत है
जिसने तुम्हें मेरा अर्द्धांग बनाया
और अब
तुम्हें मुझसे चीर रहा है
आरे से,
बदहवास भीड़ में
डुगडुगी बजाकर
सबके सामने मौत का तमाशा दिखाकर
कि हमें टिकटियों में बाँधकर
दिन दहाड़े भस्मसात करे
और खुद जिए, भीख माँगे
तब तक जब तक सब न मरें।
रचनाकाल: ०६-११-१९६७