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"दिये के सिर पर सवार / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

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दिए के सिर पर सवार
झूमता झामता खड़ा है हाथी
निबिड़ अंधकार का
पाँव से कुचलने को
सनेह का सिंगार

फिर भी
दुस्साहसिक
नहीं कर पा रहा वार
उस दिए पर एक भी बार,
देखकर उसे
निष्कंप लड़ने को तैयार,
प्राण-पण से करता,
प्रकाश का संजीवन प्रसार।

रचनाकाल: ३१-०८-१९७०