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"मेरी आहों का दीवार पे असर हो शायद / मयंक अवस्थी" के अवतरणों में अंतर
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20:39, 9 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
मेरी आहों का दीवार पे असर हो शायद
मेरे जज़्बात की यारों में कदर हो शायद
आदमी था जो वो चौपाया नज़र आता है
रीड़ पे उसकी ये सिज्दों को असर हो शायद
रख्सो रफ़्तार कुछ ज़यादा है मेरे अश्कों में
ये भी टूटे हुए तारों का सफ़र हो शायद
हर कुहासे से हम यूँ जाके लिपट जाते हैं
जैसे किस्मत का वो आगज़े सहर हो शायद
इस बयाबान में बुलबुल ने क्यूँ गाना गाया
अब इस मासूम पे शाही का कहर हो शायद