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"पेड़ / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

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11:30, 14 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

जंगल में जिए
और जंगल में पले हुए,
जंगल को घना
और जंगल को बड़ा किए
जंगल को जीते हैं
जंगल में चारों ओर
जंगल में खड़े हुए
जंगल में हरे हुए
जंगल में हर्ष के हजार हाथ
व्योम तक उठाए हुए
जंगल के जीवन को
काव्यमय बनाए हैं
आदमी को जंगल में
आदमी बनाए हैं

रचनाकाल: १९-०६-१९७६, मद्रास