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12:23, 14 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
तुम हो
नदी में खिला
आग की देह का
कमल-कोमल
हृदयंगम सूर्योदय
सौन्दर्य में
सराबोर
आग को जी रहा मैं
नदी के नाद में
तुम्हारा
संलाप सुनता हूँ,
देश
और काल को
तोड़कर, अनंत का
अनालाप बुनता हूँ।
रचनाकाल: ०१-११-१९७४