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"ये सीढ़ियाँ ही ढलान की हैं / श्रद्धा जैन" के अवतरणों में अंतर
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चिताएँ ये संविधान की हैं | चिताएँ ये संविधान की हैं | ||
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+ | फसाद दिल में है और लब पर | ||
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खुलूस, नेकी, वफ़ा, भलाई | खुलूस, नेकी, वफ़ा, भलाई | ||
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नसीब-ए-शब् में सहर है इक दिन | नसीब-ए-शब् में सहर है इक दिन | ||
− | ये बातें | + | ये बातें किस खुशगुमान की हैं ? |
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− | + | वो पर क़तर कर ये बोला 'श्रद्धा' | |
खुली हदें आसमान की हैं | खुली हदें आसमान की हैं | ||
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20:24, 18 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
समझ रहे हो, चढ़ान की हैं
ये सीढ़ियाँ तो ढलान की हैं
ये धर्म, भाषा, अमीर, मुफ़लिस
चिताएँ ये संविधान की हैं
मिठाइयाँ बस वो ही हैं फीकी
जो सब से ऊँची दुकान की हैं
फसाद दिल में है और लब पर
सदाएँ अम्न ओ अमान की हैं
खुलूस, नेकी, वफ़ा, भलाई
ये खूबियाँ बस बयान की हैं
गुनाह की हैं, गवाह वो भी
जो खिड़कियाँ उस मकान की हैं
नसीब-ए-शब् में सहर है इक दिन
ये बातें किस खुशगुमान की हैं ?
वो पर क़तर कर ये बोला 'श्रद्धा'
खुली हदें आसमान की हैं