भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"चित्त होते हारते चले जाते हैं / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=खुली आँखें खुले डैने / …) |
छो ("चित्त होते हारते चले जाते हैं / केदारनाथ अग्रवाल" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite))) |
(कोई अंतर नहीं)
|
17:49, 21 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
चित्त होते
हारते चले जाते हैं-
एक-से-एक
पुरन्दर पहलवान,
अपने ही अखाड़े में
अपने नौसिखियों से,
अपने
दाँव-पेंच से
पछाड़े गए।
रचनाकाल: ०९-०२-१९९०