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"चित्त होते हारते चले जाते हैं / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

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17:49, 21 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

चित्त होते
हारते चले जाते हैं-
एक-से-एक
पुरन्दर पहलवान,
अपने ही अखाड़े में
अपने नौसिखियों से,
अपने
दाँव-पेंच से
पछाड़े गए।

रचनाकाल: ०९-०२-१९९०