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"मेघकृपा / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल" के अवतरणों में अंतर

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जिन पर मेघों के नयन गिरे
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वे सबके सब हो गए हरे ।
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      पतझड़ का सुन कर करुण रुदन
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      जिसने उतार दे दिए वसन
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      उस पर निकले किशोर किसलय
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      कलियाँ निकली निकला यौवन ।
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जिन पर वसंत की पवन चली
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वे सबकी सब खिल गईं कली ।
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      सह स्वयं ज्येष्ठ की तीव्र तपन
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      जिसने अपने छायाश्रित जन
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      के लिए बनाई मधुर मही
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      लख उसे भरे नभ के लोचन ।
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लख जिन्हें गगन के नयन भरे
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वे सबके सब हो गए हरे ।
 
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22:17, 21 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

जिन पर मेघों के नयन गिरे
वे सबके सब हो गए हरे ।

       पतझड़ का सुन कर करुण रुदन
       जिसने उतार दे दिए वसन
       उस पर निकले किशोर किसलय
       कलियाँ निकली निकला यौवन ।

जिन पर वसंत की पवन चली
वे सबकी सब खिल गईं कली ।

       सह स्वयं ज्येष्ठ की तीव्र तपन
       जिसने अपने छायाश्रित जन
       के लिए बनाई मधुर मही
       लख उसे भरे नभ के लोचन ।

लख जिन्हें गगन के नयन भरे
वे सबके सब हो गए हरे ।