भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"स्वर्ग सरि / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= चन्द्रकुंवर बर्त्वाल }} {{KKCatKavita}} <poem> स्वर्ग सरि मं…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | स्वर्ग सरि मंदाकिनी, | + | '''मंदाकिनी घाटी को समर्पित एक कविता''' |
+ | |||
+ | स्वर्ग सरि मंदाकिनी, हे स्वर्ग सरि मंदाकिनी ! | ||
मुझको डुबा निज काव्य में, हे स्वर्ग सरि मंदाकिनी । | मुझको डुबा निज काव्य में, हे स्वर्ग सरि मंदाकिनी । | ||
गौरी-पिता-पद नि:सृते, हे प्रेम-वारि-तरंगिते | गौरी-पिता-पद नि:सृते, हे प्रेम-वारि-तरंगिते | ||
− | हे गीत-मुखरे, शुचि स्मिते, | + | हे गीत-मुखरे, शुचि स्मिते, कल्याणी, भीम मनोहरे । |
हे गुहा-वासिनि योगिनी, हे कलुष-तट-तरु नाशिनी | हे गुहा-वासिनि योगिनी, हे कलुष-तट-तरु नाशिनी | ||
− | मुझको डुबा निज काव्य में, हे स्वर्ग सरि मंदाकिनी | + | मुझको डुबा निज काव्य में, हे स्वर्ग सरि मंदाकिनी ! |
मैं बैठ कर नवनीत कोमल फेन पर शशि बिम्ब-सा | मैं बैठ कर नवनीत कोमल फेन पर शशि बिम्ब-सा | ||
पंक्ति 17: | पंक्ति 19: | ||
लहरें जहाँ ले जाएँगी, मैं जाऊँगा जलबिंदु-सा | लहरें जहाँ ले जाएँगी, मैं जाऊँगा जलबिंदु-सा | ||
पीछे न देखूँगा कभी, आगे बढूँगा मैं सदा । | पीछे न देखूँगा कभी, आगे बढूँगा मैं सदा । | ||
− | हे तट-मृदंगोत्ताल ध्वनिते, लहर-वीणा-वादिनी | + | हे तट-मृदंगोत्ताल ध्वनिते, लहर-वीणा-वादिनी ! |
मुझको डुबा निज काव्य में, हे स्वर्ग सरि मंदाकिनी । | मुझको डुबा निज काव्य में, हे स्वर्ग सरि मंदाकिनी । | ||
</poem> | </poem> |
02:41, 23 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
मंदाकिनी घाटी को समर्पित एक कविता
स्वर्ग सरि मंदाकिनी, हे स्वर्ग सरि मंदाकिनी !
मुझको डुबा निज काव्य में, हे स्वर्ग सरि मंदाकिनी ।
गौरी-पिता-पद नि:सृते, हे प्रेम-वारि-तरंगिते
हे गीत-मुखरे, शुचि स्मिते, कल्याणी, भीम मनोहरे ।
हे गुहा-वासिनि योगिनी, हे कलुष-तट-तरु नाशिनी
मुझको डुबा निज काव्य में, हे स्वर्ग सरि मंदाकिनी !
मैं बैठ कर नवनीत कोमल फेन पर शशि बिम्ब-सा
अंकित करूँगा जननि तेरे अंक पर सुर-धनु सदा ।
लहरें जहाँ ले जाएँगी, मैं जाऊँगा जलबिंदु-सा
पीछे न देखूँगा कभी, आगे बढूँगा मैं सदा ।
हे तट-मृदंगोत्ताल ध्वनिते, लहर-वीणा-वादिनी !
मुझको डुबा निज काव्य में, हे स्वर्ग सरि मंदाकिनी ।