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"जिन पर मेघ के नयन गिरे / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल" के अवतरणों में अंतर
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02:47, 23 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
जिन पर मेघ के नयन गिरे
वे सब के सब हो गए हरे
पतझड़ का सुनकर करूँ रुदन
जिसने उतार दे दिए वसन
उस पर निकले किशोर किसलय
कलियाँ निकलीं, निकला यौवन
सब के सुख से जो कली हँसी
उसकी साँसों में सुरभि बसी
सह स्वयं ज्येष्ठ की तीव्र तपन
जिसने अपने छायाश्रित जन
के लिए बनाई सुखद मही;
लख में भरे नभ के लोचन
वे सब के सब हो गए हरे !