"गुलाब खंडेलवाल / परिचय" के अवतरणों में अंतर
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गुलाबजी की छः पुस्तकें उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा और एक पुस्तक बिहार सरकार द्वारा पुरस्कृत हो चुकी हैं; प्रबंधकाव्य अहल्या, हनुमान मन्दिर ट्रस्ट, कलकत्ता द्वारा १९८५ में पुरस्कृत किया गया है तथा उनका खंडकाव्य आलोकवृत्त उत्तर प्रदेश में इंटर के पाठ्यक्रम में स्वीकृत है। काव्यसंबंधी उपलब्धियों के लिए उन्हें अमेरिका के बाल्टिमोर नगर की मानद नागरिकता १९८५ में प्रदान की गयी तथा छः दिसम्बर १९८६ को अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति, अमेरिका द्वारा राजधानी वाशिंग्टन में विशिष्ट कवि के रूप में उन्हें सम्मानित किया गया। उक्त अवसर पर मेरीलैंड के गवर्नर द्वारा समस्त मेरीलैंड स्टेट में उक्त दिन को हिन्दी-दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गयी। बाल्टीमोर नगर में भी उक्त दिवस को हिन्दी-दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गयी। २६ जनवरी २००६ को, अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डी. सी. में अमेरीका और भारत के सम्मिलित तत्तावधान में आयोजित गणतंत्र-दिवस समारोह में, मेरीलैंड के गवर्नर द्वारा गुलाबजी को कवी-सम्राट की उपाधी से अलंकृत किया गया। | गुलाबजी की छः पुस्तकें उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा और एक पुस्तक बिहार सरकार द्वारा पुरस्कृत हो चुकी हैं; प्रबंधकाव्य अहल्या, हनुमान मन्दिर ट्रस्ट, कलकत्ता द्वारा १९८५ में पुरस्कृत किया गया है तथा उनका खंडकाव्य आलोकवृत्त उत्तर प्रदेश में इंटर के पाठ्यक्रम में स्वीकृत है। काव्यसंबंधी उपलब्धियों के लिए उन्हें अमेरिका के बाल्टिमोर नगर की मानद नागरिकता १९८५ में प्रदान की गयी तथा छः दिसम्बर १९८६ को अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति, अमेरिका द्वारा राजधानी वाशिंग्टन में विशिष्ट कवि के रूप में उन्हें सम्मानित किया गया। उक्त अवसर पर मेरीलैंड के गवर्नर द्वारा समस्त मेरीलैंड स्टेट में उक्त दिन को हिन्दी-दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गयी। बाल्टीमोर नगर में भी उक्त दिवस को हिन्दी-दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गयी। २६ जनवरी २००६ को, अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डी. सी. में अमेरीका और भारत के सम्मिलित तत्तावधान में आयोजित गणतंत्र-दिवस समारोह में, मेरीलैंड के गवर्नर द्वारा गुलाबजी को कवी-सम्राट की उपाधी से अलंकृत किया गया। | ||
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+ | गुलाबजी के साहित्य के विविध अंगों पर विभिन्न विश्व-विद्यालयों में एम. ए. के कई शोधनिबंध लिखे जा चुके हैं तथा १९८५ में श्री रवीन्द्र राय को मगध विश्वविद्यलय द्वारा, १९९२ में श्री विष्णु प्रकाश मिश्र को मेरठ विश्वविद्यालय द्वारा एवं १९९४ में श्रीमती पूर्ति मिश्र को रूहेलखंड विश्वविद्यालय (बरेली) द्वारा पी. एच. डी. की उपाधी प्रदान की गयी है। पिछ्ले दो वर्षों में बरेली से तथा कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से डा. महाश्वेता देवी तथा डा. रामपति यादव के निर्देशन में दो अन्य व्यक्तियों को भी गुलाबजी के साहित्य पर पी. एच. डी. की उपाधि दी गयी है तथा अवध विश्वविद्यालय से भी एक शोधपत्र का कार्य हो रहा है। श्रीमती प्रतीभा खंडेलवाल भी मगध विश्वविद्यालय से उनके साहित्य पर पी. एच. डी. का शोधपत्र पूरा कर चुकी हैं। | ||
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+ | गुलाबजी पिछ्ले १४-१५ वर्षों से अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभापती हैं। इस पद पर वे सर्वसम्मति से पाँचवी बार चुने गये हैं। २००७ में पू. मालकीयजी द्वारा स्थापित सुप्र्सिद्ध साहित्यिक संस्था भारती परिषद, प्रयाग के भी वे अध्यक्ष चुने गये हैं। अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति की ओर से अमेरिका में प्रकाशित त्रयमासिक पत्रिका ’विश्वा’ के सम्पादक-मंडल के भी वे १५-१६ वर्षों तक वरिष्ठ सदस्य रह चुके हैं। | ||
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+ | गुलाबजी की साहित्य-साधना अनवरत चल रही है। छायावाद-चतुष्टय -- प्रसाद, निराला, पंत और महादेवी के बाद हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ कवियों में उनकी गणना होती है। |
06:07, 8 जुलाई 2007 का अवतरण
श्री गुलाब खंडेलवाल का जन्म रजस्थान के शेखावाटी प्रदेश के नगलगढ़ नगर में २१ फरवरी सन् १९२४ ई. को हुआ था। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से उन्होंने १९४३ ई. में बी.ए. किया। काशी के छात्र-जीवन में ही उनका सम्पर्क सर्वश्री बेढब बनारसी, हरिऔधजी, मैथिलीशरणजी, निरालाजी, बाबू सम्पूर्णानन्द, बाबू श्यामसुन्दरदास, पं. नन्ददुलारे बाजपेयी, पं. कमलापति त्रिपाठी, पं. सीताराम चतुर्वेदी, पं. श्री नारायण चतुर्वेदी आदि से हुआ जिससे उनके साहित्यिक संस्कार पल्लवित हुए। १९४१ ई. में उनके गीतों और कविताओं का संग्रह 'कविता' नाम से महाकवी निराला की भुमिका के साथ प्रकाशित हुआ और तब से अब तक उनके पचास से ऊपर काव्यग्रंथ और २ गद्य-नाटक प्रकाशित हो चुके हैं। उन्होंने हिन्दी में गीत, दोहा, सॉनेट, रुबाई, ग़ज़ल, नयी शैली की कविता और मुक्तक, काव्यनाटक प्रबंधकाव्य, महाकाव्य, मसनवी आदि के सफल प्रयोग किये हैं जो पं. श्रीनारायण चतुर्वेदी द्वारा संपादित गुलाब-ग्रंथावली के पहले, दुसरे, तीसरे, और चौथे, खंड में संकलित हैं तथा जिनका परिवर्धित संस्करण आचार्य विश्वनाथ सिंह के द्वारा संपादित होकर वृहत्तर रूप में पुनः प्रकाशित हुआ है।
गुलाबजी की छः पुस्तकें उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा और एक पुस्तक बिहार सरकार द्वारा पुरस्कृत हो चुकी हैं; प्रबंधकाव्य अहल्या, हनुमान मन्दिर ट्रस्ट, कलकत्ता द्वारा १९८५ में पुरस्कृत किया गया है तथा उनका खंडकाव्य आलोकवृत्त उत्तर प्रदेश में इंटर के पाठ्यक्रम में स्वीकृत है। काव्यसंबंधी उपलब्धियों के लिए उन्हें अमेरिका के बाल्टिमोर नगर की मानद नागरिकता १९८५ में प्रदान की गयी तथा छः दिसम्बर १९८६ को अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति, अमेरिका द्वारा राजधानी वाशिंग्टन में विशिष्ट कवि के रूप में उन्हें सम्मानित किया गया। उक्त अवसर पर मेरीलैंड के गवर्नर द्वारा समस्त मेरीलैंड स्टेट में उक्त दिन को हिन्दी-दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गयी। बाल्टीमोर नगर में भी उक्त दिवस को हिन्दी-दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गयी। २६ जनवरी २००६ को, अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डी. सी. में अमेरीका और भारत के सम्मिलित तत्तावधान में आयोजित गणतंत्र-दिवस समारोह में, मेरीलैंड के गवर्नर द्वारा गुलाबजी को कवी-सम्राट की उपाधी से अलंकृत किया गया।
गुलाबजी के साहित्य के विविध अंगों पर विभिन्न विश्व-विद्यालयों में एम. ए. के कई शोधनिबंध लिखे जा चुके हैं तथा १९८५ में श्री रवीन्द्र राय को मगध विश्वविद्यलय द्वारा, १९९२ में श्री विष्णु प्रकाश मिश्र को मेरठ विश्वविद्यालय द्वारा एवं १९९४ में श्रीमती पूर्ति मिश्र को रूहेलखंड विश्वविद्यालय (बरेली) द्वारा पी. एच. डी. की उपाधी प्रदान की गयी है। पिछ्ले दो वर्षों में बरेली से तथा कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से डा. महाश्वेता देवी तथा डा. रामपति यादव के निर्देशन में दो अन्य व्यक्तियों को भी गुलाबजी के साहित्य पर पी. एच. डी. की उपाधि दी गयी है तथा अवध विश्वविद्यालय से भी एक शोधपत्र का कार्य हो रहा है। श्रीमती प्रतीभा खंडेलवाल भी मगध विश्वविद्यालय से उनके साहित्य पर पी. एच. डी. का शोधपत्र पूरा कर चुकी हैं।
गुलाबजी पिछ्ले १४-१५ वर्षों से अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभापती हैं। इस पद पर वे सर्वसम्मति से पाँचवी बार चुने गये हैं। २००७ में पू. मालकीयजी द्वारा स्थापित सुप्र्सिद्ध साहित्यिक संस्था भारती परिषद, प्रयाग के भी वे अध्यक्ष चुने गये हैं। अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति की ओर से अमेरिका में प्रकाशित त्रयमासिक पत्रिका ’विश्वा’ के सम्पादक-मंडल के भी वे १५-१६ वर्षों तक वरिष्ठ सदस्य रह चुके हैं।
गुलाबजी की साहित्य-साधना अनवरत चल रही है। छायावाद-चतुष्टय -- प्रसाद, निराला, पंत और महादेवी के बाद हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ कवियों में उनकी गणना होती है।