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[[ कुण्डलियाँ / गिरिधर कवि ]] <br>
 
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[[सच की ज़ुबान / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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[[गिरिधर कवि]] <br>
  
  
[[कविताएँ]] <br>
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[[कविता]] <br>
  
  
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
[[गिरिधर कवि]] <br>
  
  
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 +
जानो नहीं जिस गाँव में ,कहा बूझनो नाम ।<br>
 +
तिन सखान की क्या कथा,जिनसो नहिं कुछ काम ॥<br>
 +
जिनसो नहिं कुछ काम,करे जो उनकी चरचा ।<br>
 +
राग द्वेष पुनि क्रोध बोध में तिनका परचा ॥<br>
 +
कह गिरिधर कविराय होइ जिन संग मिलि खानो।<br>
 +
ताकी पूछो जात बरन कुल क्या है जानो ॥1॥<br>
  
सच की नहीं होती ज़ुबान<br>
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-
 
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वह काट ली जाती है<br>
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बहुत पहले-<br>
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अहसास होते ही<br>
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कि व्यक्ति<br>
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किसी न कुसी दिन<br>
+
 
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सच बोलेगा<br>
+
 
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किसी बड़े आदमी का राज़ खोलेगा ।<br>
+
 
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शुभ कर्म का<br>
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नहीं होता कोई पथ<br>
+
 
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जो इस पथ को पहचानते हैं<br>
+
 
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वे इस पर चलने वाले<br>
+
 
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हर कदम को रोक देना<br>
+
 
+
 
+
शुभ मानते हैं ; <br>
+
 
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क्योंकि<br>
+
 
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जो शुभ पथ पर चलेगा<br>
+
 
+
वह अशुभ की पगडण्डियाँ<br>
+
 
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बन्द करेगा<br>
+
 
+
केवल भगवान से  डरेगा।<br>
+
 
+
बच नहीं सकते वे हाथ<br>
+
 
+
जो इमारत बनाते हैं<br>
+
 
+
किसी के भविष्य की , <br>
+
 
+
जो गढ़ते हैं ऐसा आकार-<br>
+
 
+
जिसकी छवि<br>
+
 
+
आँखों को बाँध ले<br>
+
 
+
 
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जो बोते हैं धरती पर <br>
+
 
+
ऐसे बीज , <br>
+
 
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जिनसे पीढ़ियाँ फूलें –फलें ।<br>
+
 
+
 
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जो देते हैं  दुलार, <br>
+
 
+
जो बाँटते हैं प्यार, <br>
+
 
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जो उठते हैं केवल <br>
+
 
+
आशीर्वाद के लिए<br>
+
 
+
जो बढ़ते हैं किसी की रक्षा में<br>
+
 
+
वे काट लिए जाते हैं  ; <br>
+
 
+
क्योंकि ऐसा न करने पर<br>
+
 
+
कुकर्म के अनगिन भवन<br>
+
 
+
ढह जाएँगे , <br>
+
 
+
टूट जाएँगी कई तिलिस्मी मूर्तियाँ ।<br>
+
 
+
तृप्त पीढ़ी रिरियाएगी नहीं<br>
+
 
+
दुलार ,प्यार और आशीर्वाद <br>
+
 
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की छाया में पले लोग<br>
+
 
+
उनकी खरीद भीड़ नहीं बन सकेंगे ।<br>
+
 
+
 
+
…………………………………………………..
+
 
+
 
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उजाले की खातिर मैं द्वार आया। <br>
+
 
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शुक्रिया तुमने घर मेरा जलाया ..<br>
+
 
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……………………………………………………………………………
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[[कुछ दु:ख झेलो / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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{{KKGlobal}}<br>
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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[[कविताएँ]] <br>
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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{{KKGlobal}}<br>
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+
 
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कुछ दु:ख झेलो<br>
+
 
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कुछ दु:ख ठेलो<br>
+
 
+
कुछ राम भरोसे छोड़ दो।<br>
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दुख क्या बन्धु<br>
+
 
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बहती नदिया<br>
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+
नहीं एक तट रह पाती है।<br>
+
 
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जिधर चाहती<br>
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मुड जाती है<br>
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सुख-दुख बहा ले जाती है।<br>
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या धारा के संग तुम<br>
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या धारा का मुख मोड़ दो।<br>
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[[पुरानी कमीज़ / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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{{KKGlobal}}<br>
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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[[कविताएँ]] <br>
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~
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{{KKGlobal}}<br>
+
 
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मेरा बेटा<br>
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जब कुछ बड़ा हुआ<br>
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पहन लेता मेरे जूते<br>
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कभी मेरी क़मीज़<br>
+
 
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चेहरे पर आ जाती चमक<br>
+
 
+
नन्हें पैर - बड़े जूते<br>
+
 
+
छोटा कद , झूलती कमीज़<br>
+
 
+
और खुशी- छूती आसमान ।<br>
+
 
+
जब बराबर कद हो गया, <br>
+
 
+
मेरे जूते और कमीज़<br>
+
 
+
उसके हो गए ।<br>
+
 
+
आज मैंने पहन ली<br>
+
 
+
उसकी पहनी हुई कमीज<br>
+
 
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थोड़ा चटख रंग वाली<br>
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बेटे ने टोका -<br>
+
 
+
‘ये पुरानी कमीज़ है<br>
+
 
+
आपको जचती नहीं’<br>
+
 
+
और अगले दिन ले आया<br>
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+
कीमती नई कमीज़-<br>
+
 
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‘इसे पहनें<br>
+
 
+
खूब फबेगी आप  पर’<br>
+
 
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वह नहीं चाहता कि<br>
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उसका बाप  उतरन पहने ।<br>
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वह चला गया अब दूर ऽ ऽ ऽ <br>
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दूसरे शहर<br>
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घर एकदम खाली –सा<br>
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लगता है ।<br>
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मैंने फिर पहन ली चुपके से<br>
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उसकी वही पुरानी कमीज़<br>
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जिसके रेशे -रेशे में<br>
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बेटे की छुअन रमी है, <br>
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उसका स्पन्दन<br>
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धड़कता है मेरी शिराओं में<br>
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उसके पसीने की गन्ध<br>
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महसूस करता हूँ हर साँस में<br>
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इस कमीज़ के आगे निर्जीव है<br>
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नई कीमती कमीज़ ।<br>
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[[मेरे मन / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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{{KKGlobal}}<br>
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
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[[कविताएँ]] <br>
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
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+
 
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{{KKGlobal}}<br>
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+
 
+
मत उदास हो मेरे मन।<br>
+
 
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जिनको तुम काँटे समझे हो<br>
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वे तो प्यारे चन्दन वन ।<br>
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जितना पथ तुम चल पाए हो<br>
+
 
+
वह भी क्या कम बतलाओ । <br>
+
 
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जितना अब तक बन पाए  हो<br>
+
 
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उस पर तो कुछ हरषाओ<br>
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,
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[[तुम मत घबराना / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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{{KKGlobal}}<br>
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
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[[कविताएँ]] <br>
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
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{{KKGlobal}}<br>
+
 
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दुख के बादल आएँगे , <br>
+
 
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छाएँगे , बरसेंगे ।<br>
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यह जीवन की रीत है बन्धु <br>
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तुम मत घबराना ।<br>
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सन्त, महात्मा,  राजा, रानी <br>
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सबका दौर रहा।<br>
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दो पल बीते फिर धरती पर<br>
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कहीं न ठौर रहा ।<br>
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बिना पंख जो उड़े गगन में<br>
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मुँह की खाएँगे ।<br>
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आसमान क्या धरती पर भी <br>
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ठौर न पाएँगे ।<br>
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धूप-छाँव के जीवन में<br>
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सदा सुखी है कोई ? <br>
+
 
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कौन मरण से बच पाया है<br>
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हमको बतलाना ।<br>
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जो गर्दन पर छुरी चलाकर  <br>
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माया जोड़ रहे <br><br>
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+
अपनी किस्मत के घट को वे <br>
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खुद ही फोड़ रहे ।<br>
+
 
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बिस्तर पर वे  नोट बिछाकर <br>
+
 
+
क्या पाएँगे चैन<br>
+
 
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कौन लूट ले या छीन ले<br>
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इसमें कटती रैन ।<br>
+
 
+
केवल दो रोटी की भूख <br>
+
 
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फिर भी हैं हलकान<br>
+
 
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भूखों तक का कौर छीने<br>
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दिखलाते हैMM  शान<br>
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[[सदा कामना मेरी / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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{{KKGlobal}}<br>
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
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[[कविताएँ]] <br>
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
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{{KKGlobal}}<br>
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+
 
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सदा कामना मेरी-<br>
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कुछ अच्छा करने की<br>
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सबका दुख हरने की ।<br>
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हर फूल खिलाने की<br>
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हर शूल हटाने की ।<br>
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+
सदा कामना मेरी -<br>
+
 
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हरियाली ले आऊँ<br>
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खुशहाली दे पाऊँ ।<br>
+
 
+
नेह नीर बरसाऊँ<br>
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धरती को सरसाऊँ ।<br>
+
 
+
सदा कामना मेरी-<br>
+
 
+
मैं सबकी पीर हरूँ<br>
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आँधी में धीर धरूँ ।<br>
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पापों से सदा डरूँ<br>
+
 
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जीवन में नया  करूँ ।<br>
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+
सदा कामना मेरी-<br>
+
 
+
नन्हीं पौध लगाऊँ<br>
+
 
+
सींच-सींच हरसाऊँ ।<br>
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+
अनजाने आँगन को<br>
+
 
+
उपवन –सा महकाऊँ ।<br>
+
 
+
सदा कामना मेरी-<br>
+
 
+
हर मुखड़ा दमक उठे <br>
+
 
+
आँखें सब चमक उठें ।<br>
+
 
+
अधर सभी मुसकएँ<br>
+
 
+
मीठे गीत सुनाएँ ।<br><br>
+
 
+
+
[[उजाले / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
+
 
+
{{KKGlobal}}<br>
+
 
+
 
+
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
+
 
+
[[कविताएँ]] <br>
+
 
+
 
+
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
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+
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+
 
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{{KKGlobal}}<br>
+
 
+
 
+
 
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उम्र भर रहते नहीं हैं <br>
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संग में सबके उजाले ।<br>
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हैसियत पहचानते हैं <br>
+
 
+
ज़िन्दगी के दौर काले ।<br>
+
 
+
तुम थके हो मान लेते-<br>
+
 
+
हैं सफ़र यह ज़िन्दगी का ।<br>
+
 
+
रोकता रस्ता न कोई<br>
+
 
+
प्यार का या बन्दगी का ।<br>
+
 
+
हैं यहीं मुस्कान मन की<br>
+
 
+
हैं यहीं पर दर्द-छाले। <br>
+
 
+
तुम हँसोगे ये अँधेरा , <br>
+
 
+
दूर होता जाएगा  ।<br>
+
 
+
तुम हँसोगे रास्ता भी<br>
+
 
+
गाएगा मुस्कराएगा ।<br>
+
 
+
बैठना मत मोड़ पर तू<br>
+
 
+
दीप देहरी पर जलाले ।<br>
+
 
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+
[[मैं खुश हूँ / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
+
 
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{{KKGlobal}}<br>
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+
 
+
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
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+
[[कविताएँ]] <br>
+
 
+
 
+
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
+
 
+
~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~
+
 
+
{{KKGlobal}}<br>
+
 
+
 
+
मैं बहुत खुश हूँ<br>
+
 
+
मेरे मौला ;क्योंकि-<br>
+
 
+
मेरे पास धन नहीं ; <br>
+
 
+
जिसको रखने के लिए<br>
+
 
+
तिज़ौरी खरीदूँ , <br>
+
 
+
रातों की नींद लुटाकर<br>
+
 
+
पहरा दूँ , <br>
+
 
+
जिसके लुट जाने पर<br>
+
 
+
शोक मनाऊँ<br>
+
 
+
आँसू बहाऊँ ।<br>
+
 
+
मैं बहुत खुश  हूँ<br>
+
 
+
मेरे मौला ;क्योंकि-<br>
+
 
+
मेरे पास वह<br>
+
 
+
अहंकार नहीं है , <br>
+
 
+
जिसे ढोने  के लिए<br>
+
 
+
गाड़ी खरीदनी पड़े ।<br>
+
 
+
जिस पर खड़े होकर<br>
+
 
+
यह प्यार भरी दुनिया<br>
+
 
+
बौनी दिखाई दे<br>
+
 
+
और मैं खुद को महान्<br>
+
 
+
समझने की हिमाकत कर सकूँ ।<br>
+
 
+
मैं बहुत खुश हूँ <br>
+
 
+
मेरे मौला ;क्योंकि-<br>
+
 
+
मेरे ज़ेहन में सिर्फ़<br>
+
 
+
तेरा अहसास है , <br>
+
 
+
जो मुझसे कहता है-<br>
+
 
+
रहो इस दुनिया में<br>
+
 
+
इस तरह , <br>
+
 
+
जैसे कोई रहता हो दुनिया में <br>
+
 
+
अजनबी की तरह ।<br>
+
 
+
 
+
 
+
 
+
[[कर्मठ गधा / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
+
 
+
{{KKGlobal}}<br>
+
 
+
 
+
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
+
 
+
[[कविताएँ]] <br>
+
 
+
 
+
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
+
 
+
~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~
+
 
+
{{KKGlobal}}<br>
+
 
+
 
+
घोड़ों का क़द ऊँचा है<br>
+
 
+
माना पद भी ऊँचा है ।<br>
+
 
+
गधा नहीं फिर भी कम है<br>
+
 
+
ढोता बोझ नहीं ग़म है ।<br>
+
 
+
घोड़ा रेस जिताता है<br>
+
+
कुछ जेबें भर जाता है ।<br>
+
 
+
जो-जो काम गधा करता<br>
+
 
+
घोड़ा कब कर पाता है ।<br>
+
 
+
धीरज का है रूप गधा<br>
+
 
+
नहीं क्रोध में जलता है ।<br>
+
 
+
खा-सूखा खाकर भी<br>
+
 
+
बड़ी मस्ती में चलता है ।<br>
+
 
+
 
+
मान-अपमान से परे गधा<br>
+
 
+
कभी नहीं शोक मनाता है ।<br>
+
 
+
अपने ऊँचे मधुर स्वर में<br>
+
 
+
गुण प्रभु के गाता है ।<br>
+
 
+
सुख-दुख से निरपेक्ष गधा<br>
+
 
+
सचमुच सच्चा संन्यासी है ।<br>
+
 
+
जिस हालत में भगवान रखे<br>
+
 
+
वही हालत सुख-राशि है ।<br>
+
 
+
गधा कर्म का पूजक है<br>
+
 
+
सुबह जल्दी उठ जाता है ।<br>
+
 
+
बीवी सोती रहती है<br>
+
 
+
गधा ही चाय बनाता है ।<br>
+
 
+
एसी चैम्बर में घोड़ा<br>
+
 
+
घण्टी खूब बजाता है ।<br>
+
 
+
गधा देर में जब सुनता<br>
+
 
+
तब घोड़ा चिल्लाता है ।<br>
+
 
+
दफ़्तर में जाकर देखो<br>
+
 
+
गधे डटकरके काम करें ।<br>
+
 
+
घोड़ा फ़ाइलों में छुपकर<br>
+
 
+
जब चाहे आराम करे ।<br>
+
 
+
घोड़ा खाता है तर माल<br>
+
 
+
गधा बस पान चबाता है ।<br>
+
 
+
चाहे जितना  भी थूके<br>
+
 
+
न पीकदान भर पाता है ।<br>
+
 
+
जिस दिन गधा नहीं होगा<br>
+
 
+
दफ़्तर बन्द हो जाएँगे ।<br>
+
 
+
आरामतलब जो भी घोड़े<br>
+
 
+
सारा बोझ उठाएँगे ।<br>
+
 
+
इसीलिए मैं कहता हूँ-<br>
+
 
+
गर्दभ का सम्मान करो ।<br>
+
 
+
राह-घाट में मिल जाए<br>
+
 
+
कभी न तुम अपमान करो ।<br>
+
 
+
 
+
 
+
 
+
 
+
 
+
 
+
[[हरियाली के गीत / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
+
 
+
{{KKGlobal}}<br>
+
 
+
 
+
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
+
 
+
[[कविताएँ]] <br>
+
 
+
 
+
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
+
 
+
~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~
+
 
+
{{KKGlobal}}<br>
+
 
+
मत काटो तुम ये पेड़<br>
+
 
+
हैं ये लज्जावसन<br>
+
 
+
इस माँ वसुन्धरा के ।<br>
+
 
+
इस संहार के बाद<br>
+
 
+
अशोक की तरह<br>
+
 
+
सचमुच तुम बहुत पछाताओगे ; <br>
+
 
+
बोलो फिर किसकी गोद में<br>
+
 
+
सिर छिपाओगे ? <br>
+
 
+
शीतल छाया<br>
+
 
+
फिर कहाँ से पाओगे ? <br>
+
 
+
कहाँ से पाओगे  फिर फल? <br>
+
 
+
कहाँ से मिलेगा ? <br>
+
 
+
सस्य श्यामला को <br>
+
 
+
सींचने वाला जल ? <br>
+
 
+
रेगिस्तानों में<br>
+
 
+
तब्दील हो जाएँगे खेत<br>
+
 
+
बरसेंगे कहाँ से <br>
+
 
+
उमड़-घुमड़कर बादल ? <br>
+
 
+
थके हुए मुसाफ़िर<br>
+
 
+
पाएँगे कहाँ से<br>
+
 
+
श्रमहारी छाया ? <br>
+
 
+
पेड़ों की हत्या करने से <br>
+
 
+
हरियाली के दुश्मनों को<br>
+
 
+
कब सुख मिल पाया ? <br>
+
 
+
यदि चाहते हो –<br>
+
 
+
आसमान से कम बरसे आग<br>
+
 
+
अधिक बरसें बादल , <br>
+
 
+
खेत न बनें मरुस्थल, <br>
+
 
+
ढकना होगा वसुधा का तन<br>
+
 
+
तभी कम होगी<br>
+
 
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गाँव –नगर की तपन ।<br>
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उगाने होंगे अनगिन पेड़<br>
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बचाने होंगे<br>
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दिन- रात कटते हरे- भरे वन ।<br>
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तभी हर डाल फूलों से महकेगी<br>
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फलों से लदकर<br>
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नववधू की गर्दन की तरह<br>
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झुक जाएगी<br>
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नदियाँ खेतों को सींचेंगी<br>
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सोना बरसाएँगी<br>
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दाना चुगने की होड़ में<br>
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चिरैया चहकेगी<br>
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अम्बर में उड़कर<br>
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हरियाली के गीत गाएगी<br>
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21:41, 9 अगस्त 2007 के समय का अवतरण

कुण्डलियाँ / गिरिधर कवि




गिरिधर कवि


कविता


गिरिधर कवि


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जानो नहीं जिस गाँव में ,कहा बूझनो नाम ।
तिन सखान की क्या कथा,जिनसो नहिं कुछ काम ॥
जिनसो नहिं कुछ काम,करे जो उनकी चरचा ।
राग द्वेष पुनि क्रोध बोध में तिनका परचा ॥
कह गिरिधर कविराय होइ जिन संग मिलि खानो।
ताकी पूछो जात बरन कुल क्या है जानो ॥1॥

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