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"राम जी की माया / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर

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20:09, 12 जून 2007 का अवतरण

रचनाकारः अनिल जनविजय

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कोई बेचैन फिरता है, कोई घबराया घबराया

कयामत के दिन आए हैं, राम जी की माया ।


तनाव फैला हुआ है, देश भर में यहाँ वहाँ

जुल्म व सितम का एक सिलसिला चलाया ।


घर अंधेरे हो गए, गलियाँ दिखती हैं वीरान

शहरों को आग लगा दी, इन्सानों को जलाया ।


दूर-दूर तक जहाँ भी उनका कहर बरपा किया

जले गोश्त की बू औ' कोयला ही नज़र आया ।


पिछले कुछ समय से हंगामा है इस मुल्क में

मर्दों की टोपियाँ छिन गईं, औरतों का साया ।


(2003)