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"अपने ही खेत की मट्टी से जुदा हूँ मैं तो / नश्तर ख़ानकाही" के अवतरणों में अंतर

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00:25, 15 फ़रवरी 2011 का अवतरण

अपने ही खेत की मिट्टी से जुदा हूं मैं तो इक शरारा हूं कि पत्थर से उगा हूं मैं तो


मेरा क्या है कोई देखे या न देखे मुझको सुब्ह के डूबते तारों की ज़िया हूं मैं तो


अब ये सूरज मुझे सोने नहीं देगा शायद सिर्फ इक रात की लज्जत का सिला हूं मैं तो


वो जो शोलों से जले उनका मदावा है यहां मेरा क्या जिक्र कि पानी से जला हूं मैं तो


कौन रोकगा तुझे दिन की दहकती हुई धूप बर्फ के ढेर पे चुपचाप खड़ा हूं मैं तो


लाख मुहमल सही पर कैसे मिटाएगी मुझे जिन्दगी तेरे मुकद्दर का लिखा हूं मैं तो।