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"हम जो नीम तारीक राहों में मारे गए / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़" के अवतरणों में अंतर

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हम जो नीम तारीक राहों में मारे गए ।
 
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अपमा ग़म था गवाही तेरे हुस्न की
 
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देख इस गवाही पर क़ायम रहे हम ।
 
देख इस गवाही पर क़ायम रहे हम ।
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11:42, 17 फ़रवरी 2011 का अवतरण

हम जो नीम तारीक राहों में मारे गए ।

तेरे होठों के फूलों की चाहत में 
दार की ख़ुश्क टहनी पे वारे गए ।
हम जो नीम तारीक राहों में मारे गए ।

दार - फ़ाँसी का तख़्त, तारीक - अंधेरे, नीम - धुधला, कम रोशन

......

चले आए जहाँ तक लाए क़दम
लबों पर हर्फ़-ए-ग़ज़ल दिल में क़िन्दील-ए-ग़म ।
अपमा ग़म था गवाही तेरे हुस्न की
देख इस गवाही पर क़ायम रहे हम ।

(To be completed)