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"रूठे हुए लोगों को मनाना नहीं आता / सिराज फ़ैसल ख़ान" के अवतरणों में अंतर
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17:51, 17 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
रूठे हुए लोगों को मनाना नहीं आता
सज्दे के सिवा सर को झुकाना नहीं आता
पत्थर तो चलाना मुझे आता है दोस्तो
शाख़ों से परिन्दों को उड़ाना नहीं आता
नफ़रत तो जताने में नहीं चूकते हो तुम
हैरत है तुम्हें प्यार जताना नहीं आता
मैं इसलिए नाकाम मोहब्बत में रह गया
झूठा मुझे वादा या बहाना नहीं आता
सारे शहर को राख मेँ तब्दील कर गया
कहते थे उसे आग लगाना नहीं आता
होटों पे सजी रहती है मुस्कान इसलिए
सीने मेँ मुझे दर्द छुपाना नहीं आता