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♦ रचनाकार: हृदय नारायण सिंह द्वारा संकलित
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तू देख जनि चान, हमरा चान लागे लू।
मचा देबू कहियो तूफान लागे लू।
मत करिह सिंगार, मिली ओरहन हजार
तोहके देखे खातिर मेला में हो जायी मार
रूप के तू बड़हन दुकान लागे लू।
केहू आपन दौलत करेला निछावुर
सुध-बुध केहू खो के बनि जाना बाउर
तूर देबू सबकर गुमान लागू लू।
हंसि हंसि के जन आज बिजुरी गिराव
अभिज्ञात जी के जनि पागल बनाव
अंगड़ाई ले लू कमान लागे लू।