भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सुदामा चरित / नरोत्तमदास / पृष्ठ 3" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरोत्तमदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |आगे=…)
 
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
[[Category:लम्बी रचना]]
 
[[Category:लम्बी रचना]]
 
{{KKPageNavigation
 
{{KKPageNavigation
 +
|पीछे=सुदामा चरित / नरोत्तमदास / पृष्ठ 2
 
|आगे=सुदामा चरित / नरोत्तमदास / पृष्ठ 4
 
|आगे=सुदामा चरित / नरोत्तमदास / पृष्ठ 4
 
|सारणी=सुदामा चरित / नरोत्तमदास
 
|सारणी=सुदामा चरित / नरोत्तमदास
पंक्ति 39: पंक्ति 40:
 
'''भाग-1 समाप्त'''
 
'''भाग-1 समाप्त'''
  
'''भाग-2'''
 
'''सुदामा का द्वारिका गमन'''
 
 
::::'''(सुदामा)'''
 
 
तीन दिवस चलि विप्र के, दूखि उठे जब पाँय ।
 
एक ठौर सोए कहॅू, घास पयार बिछाय ।।26।।
 
 
अन्तरयामी आपु हरि, जानि भगत की पीर ।
 
सोवत लै ठाढौ कियो, नदी गोमती तीर ।।27।।
 
 
इतै गोमती दरस तें, अति प्रसन्न भौ चित ।
 
बिप्र तहॉ  असनान करि, कीन्हो नित्त निमित्त ।।28।।
 
 
भाल तिलक घसि कै दियो, गही सुमिरनी हाथ,
 
देखि दिव्य द्वारावती, भयो अनाथ सनाथ ।।29।।
 
 
दीठि चकचौंधि गई देखत सुबर्नमईए
 
एक तें सरस एक द्वारिका के भौन हैं ।
 
पूछे बिन कोऊ कहूँ काहू सों न करे बातए
 
देवता से बैठे सब साधि.साधि मौन हैं ।
 
देखत सुदामा धाय पौरजन गहे पाँयए
 
कृपा करि कहौ विप्र कहाँ कीन्हौ गौन हैं ।
 
धीरज अधीर के हरन पर पीर केए
 
बताओ बलवीर के महल यहाँ कौन हैं ।।30।।
 
 
</poem>
 
</poem>

12:22, 28 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण

(सुदामा)

प्रीति में चूक नहीं उनके हरि, मो मिलिहैं उठि कंठ लगाइ कै ।
द्वार गये कुछ दैहै पै दैहैं, वे द्वारिकानाथ जू है सब लाइके ।
जे विधि बीत गये पन द्वै, अब तो पहूँचो बिरधपान आइ कै ।
जीवन शेष अहै दिन केतिक, होहूँ हरी सो कनावडो जाइ कै ।।21।।

(सुदामा की पत्नी)

हूजै कनावडों बार हजार लौं, जौ हितू दीनदयालु से पाइए ।
तीनहु लोक के ठाकुर जे, तिनके दरबार न जात लजाइए ।
मेरी कही जिय में धरि कै पिय, भूलि न और प्रसंग चलाइए ।
और के द्वार सो काज कहा पिय, द्वारिकानाथ के द्वारे सिधारिए ।।22।।

(सुदामा)

द्वारिका जाहु जू द्वारिका जाहु जूए आठहु जाम यहै झक तेरे ।
जौ न कहौ करिये तो बड़ौ दुखए जैये कहाँ अपनी गति हेरे ।।
द्वार खरे प्रभु के छरिया तहँए भूपति जान न पावत नेरे ।
पाँच सुपारि तै देखु बिचार कैए भेंट को चारि न चाउर मेरे ।।23।।

यह सुनि कै तब ब्राह्मनीए गई परोसी पास ।
पाव सेर चाउर लियेए आई सहित हुलास ।।24।।

सिद्धि करी गनपति सुमिरिए बाँधि दुपटिया खूँट ।
माँगत खात चले तहाँए मारग वाली बूट ।।25।।

भाग-1 समाप्त