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12:22, 28 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
(सुदामा)
प्रीति में चूक नहीं उनके हरि, मो मिलिहैं उठि कंठ लगाइ कै ।
द्वार गये कुछ दैहै पै दैहैं, वे द्वारिकानाथ जू है सब लाइके ।
जे विधि बीत गये पन द्वै, अब तो पहूँचो बिरधपान आइ कै ।
जीवन शेष अहै दिन केतिक, होहूँ हरी सो कनावडो जाइ कै ।।21।।
(सुदामा की पत्नी)
हूजै कनावडों बार हजार लौं, जौ हितू दीनदयालु से पाइए ।
तीनहु लोक के ठाकुर जे, तिनके दरबार न जात लजाइए ।
मेरी कही जिय में धरि कै पिय, भूलि न और प्रसंग चलाइए ।
और के द्वार सो काज कहा पिय, द्वारिकानाथ के द्वारे सिधारिए ।।22।।
(सुदामा)
द्वारिका जाहु जू द्वारिका जाहु जूए आठहु जाम यहै झक तेरे ।
जौ न कहौ करिये तो बड़ौ दुखए जैये कहाँ अपनी गति हेरे ।।
द्वार खरे प्रभु के छरिया तहँए भूपति जान न पावत नेरे ।
पाँच सुपारि तै देखु बिचार कैए भेंट को चारि न चाउर मेरे ।।23।।
यह सुनि कै तब ब्राह्मनीए गई परोसी पास ।
पाव सेर चाउर लियेए आई सहित हुलास ।।24।।
सिद्धि करी गनपति सुमिरिए बाँधि दुपटिया खूँट ।
माँगत खात चले तहाँए मारग वाली बूट ।।25।।
भाग-1 समाप्त