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"शहर : एक बिम्ब / सांवर दइया" के अवतरणों में अंतर
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14:50, 6 मार्च 2011 के समय का अवतरण
बडै शहरां रै
संकड़ै कमरां में
मिनखां कनै
बैठा
सूता
ऊभा
मिनख
मिनख
मिनख
जाणै
दाब-दाब र भरी हुवै
जूनी अर अकारण फाइलां
बोरां में !
कविता का हिंदी अनुवाद
बड़े शहर में
संकड़े कमरों में
आदमियों के पास
बैठे
सोए
खड़े
आदमी
आदमी
आदमी
जैसे ठूंस-ठूंस कर भरी हो-
पुरानी और बेकार फाइलें-
बोरों में !
अनुवाद : नीरज दइया