भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"खून इन्सां का जो सड़कों पे बहाना चाहे / मासूम गाज़ियाबादी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मासूम गाज़ियाबादी |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> खून इन्…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:37, 9 मार्च 2011 के समय का अवतरण
खून इन्सां का जो सड़कों पे बहाना चाहे
वो अदावत के चिरागों को जलाना चाहे
घर के हालात से वाबस्ता है बच्चा शायद
जो खिलौनों की जगह बोझ उठाना चाहे
कोशिशें हमको उठाने की हुई हैं ऐसे
जैसे पलकों से कोई अश्क उठाना चाहे
अहले फुटपाथ ही दागों की तरह उभरेंगे
तू अगर हिंद की तस्वीर बनाना चाहे
पहले सर रखता है काद्मों पे गुनाहगारों के
दौरे- हाजिर में हुकूमत को जो पाना चाहे
हौसला देखिये बारिश में संगरेज़ों की
शीशागार दिल सि कोई चीज़ बनाना चाहे