भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"होली का मौसम आया है / रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ }} {{KKCatBaalKavita}} <poem> होली आई, …) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
}} | }} | ||
{{KKCatBaalKavita}} | {{KKCatBaalKavita}} | ||
+ | {{KKAnthologyHoli}} | ||
<poem> | <poem> | ||
होली आई, होली आई । | होली आई, होली आई । |
18:49, 15 मार्च 2011 के समय का अवतरण
होली आई, होली आई ।
गुजिया, मठरी, बरफ़ी लाई ।।
मीठे-मीठे शक्करपारे,
सजे -धजे पापड़ हैं सारे ।
चिप्स कुरकुरे और करारे,
दहीबड़े हैं प्यारे-प्यारे ।।
तन-मन में मस्ती उभरी है,
पिस्ता बरफ़ी हरी-भरी है ।
पीले, हरे गुलाल लाल हैं,
रंगों से सज गये थाल हैं ।।
कितने सुन्दर, कितने चंचल,
हाथों में होली की हलचल,
फागुन सबके मन भाया है!
होली का मौसम आया है!!