भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नदी किनारे / ठाकुरप्रसाद सिंह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=वंशी और मादल / ठाकुरप्रसाद सिंह
 
|संग्रह=वंशी और मादल / ठाकुरप्रसाद सिंह
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatNavgeet}}
 +
<poem>
 
नदी किनारे
 
नदी किनारे
 
 
बैठ रेत पर
 
बैठ रेत पर
 
 
घने कदम्ब के तले
 
घने कदम्ब के तले
 
 
होगे बजा रहे  
 
होगे बजा रहे  
 
 
वंशी
 
वंशी
 
 
तुम मेरे प्रिय साँवले
 
तुम मेरे प्रिय साँवले
 
  
 
एक हाथ से दिया बारूँ
 
एक हाथ से दिया बारूँ
 
 
एक हाथ से आँखें पोंछूँ
 
एक हाथ से आँखें पोंछूँ
 
 
सोचूँ
 
सोचूँ
 
 
मुझसे भी होंगे क्या
 
मुझसे भी होंगे क्या
 
 
बिरह ताप के जले
 
बिरह ताप के जले

00:20, 20 मार्च 2011 का अवतरण

नदी किनारे
बैठ रेत पर
घने कदम्ब के तले
होगे बजा रहे
वंशी
तुम मेरे प्रिय साँवले

एक हाथ से दिया बारूँ
एक हाथ से आँखें पोंछूँ
सोचूँ
मुझसे भी होंगे क्या
बिरह ताप के जले