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"नदी किनारे / ठाकुरप्रसाद सिंह" के अवतरणों में अंतर

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मुझसे भी होंगे क्या
 
मुझसे भी होंगे क्या
 
बिरह ताप के जले
 
बिरह ताप के जले
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00:20, 20 मार्च 2011 के समय का अवतरण

नदी किनारे
बैठ रेत पर
घने कदम्ब के तले
होगे बजा रहे
वंशी
तुम मेरे प्रिय साँवले

एक हाथ से दिया बारूँ
एक हाथ से आँखें पोंछूँ
सोचूँ
मुझसे भी होंगे क्या
बिरह ताप के जले