भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"फिर वही चेहरा / आलोक श्रीवास्तव-२" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आलोक श्रीवास्तव-२ |संग्रह=जब भी वसन्त के फूल खि…)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:05, 21 मार्च 2011 के समय का अवतरण

मेरे तसव्वुर में फिर वही चेहरा है
वही आंखें हैं
वही क़दम

उतर आई है रात
सूना चांद
नभ में

जीवन यहां हारता है शायद
यहां कला, सोच, ख़्याल
यहां तक कि
सपने भी टूटे पड़े हैं

यह दुखों की रात है
शायद...
पर
तसव्वुर में वह चेहरा
अब भी है ।