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"राखी / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल" के अवतरणों में अंतर
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भाई बहिन मिलेंगे | भाई बहिन मिलेंगे | ||
मानो पहली बार मिले हों | मानो पहली बार मिले हों | ||
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माँ के लोचन हमें देख गीले हों | माँ के लोचन हमें देख गीले हों | ||
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पा गया हूँ मैं बहन, | पा गया हूँ मैं बहन, | ||
माँ तुम्हारे शून्य उर में | माँ तुम्हारे शून्य उर में | ||
− | आ गया | + | आ गया रुन-झुन । |
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01:55, 26 मार्च 2011 के समय का अवतरण
कविता का एक अंश ही उपलब्ध है । शेषांश आपके पास हो तो कृपया जोड़ दें या कविता कोश टीम को भेज दें
भाई बहिन मिलेंगे
मानो पहली बार मिले हों
हम मिलते हों
माँ के लोचन हमें देख गीले हों
..............
पा गई आज तुम भैया,
पा गया हूँ मैं बहन,
माँ तुम्हारे शून्य उर में
आ गया रुन-झुन ।