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"उषा / शमशेर बहादुर सिंह" के अवतरणों में अंतर

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|संग्रह=कुछ कविताएँ / शमशेर बहादुर सिंह
 
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प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे<br><br>
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प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे
  
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बहुत काली सिल जरा-से लाल केशर से<br>
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कि धुल गयी हो<br><br>
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नील जल में या किसी की<br>
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जैसे हिल रही हो।<br><br>
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जैसे हिल रही हो ।
  
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        जादू टूटता है इस उषा का अब
सूर्योदय हो रहा है।<br>
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(कविता संग्रह, "टूटी हुई बिखरी हुई" से)
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23:24, 28 मार्च 2011 के समय का अवतरण

प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे

भोर का नभ

राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है)

बहुत काली सिल जरा-से लाल केशर से
कि धुल गयी हो

स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
        मल दी हो किसी ने

नील जल में या किसी की
        गौर झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो ।

और...
        जादू टूटता है इस उषा का अब
सूर्योदय हो रहा है।


(कविता-संग्रह, "टूटी हुई बिखरी हुई" से)